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माता की महिमा कछार शिव मंदिर में नवरात्र पर्व पे विषेस….

पत्थलगांव ✍️जितेन्द्र गुप्ता

नवरात्रि के चतुर्थ दिवस बनारस से आये आचार्य चन्द्रेश्वर मिश्रा ने बताया कि कच्छार मंदिर में कोई भी भक्त अपने कामना को मन में रखकर एक नारियल और चूनरी बांधता है माता रानी की कृपा से उसकी कामना पूर्ण हो जाती है बस कामना में कोई पाप आत्मा रखकर बांधने वो पूरी नहीं होती कहते कहते महाराज ने कहा कि पाप कि भागी कौन होता है इस पर बहुत सुंदर वर्णन किया है महराज  ने
पाप के भागी
एक बार की बात है की किसी राजा ने यह फैसला लिया के वह प्रतिदिन एक सौ अंधे लोगों को खीर खिलाया करेगा।

 

🖕कछार शिव मंदिर में मनोकामना ज्योति कलश

एक दिन खीर वाले दूध में सांप ने मुँह डाला और दूध को विषैला कर दिया। ज़हरीली खीर को खाकर सभी एक सौ अंधे व्यक्ति मर गए। राजा बहुत परेशान हुआ कि मुझे एक सौ आदमियों की हत्या का पाप लगेगा।
राजा परेशानी की हालत में अपने राज्य को छोड़कर जंगलों में भक्ति करने के लिए चल पड़ा, ताकि इस पाप की माफी मिल सके।
रास्ते में एक गाँव आया। राजा ने चौपाल में बैठे लोगों से पूछा की क्या इस गाँव में कोई भक्ति भाव वाला परिवार है ? ताकि उसके घर रात काटी जा सके।
चौपाल में बैठे लोगों ने बताया कि इस गाँव में दो बहन भाई रहते हैं जो खूब पूजा पाठ करते हैं। राजा उनके घर रात ठहर गया।
सुबह जब राजा उठा तो लड़की ध्यान में बैठी हुई थी। लड़की का नियम था कि वह दिन निकलने से पहले ही ध्यान से उठ जाती थी और नाश्ता तैयार करती थी। लेकिन उस दिन वह लड़की बहुत देर तक ध्यान पर बैठी रही।


जब लड़की ध्यान से उठी तो उसके भाई ने कहा–‛बहन तू इतना लेट उठी है, अपने घर मुसाफिर आया हुआ है। इसने नाश्ता करके दूर जाना है। तुझे ध्यान से जल्दी उठना चाहिए था।’
लड़की ने जवाब दिया–‛भैया ऊपर एक ऐसा मामला उलझा हुआ था। धर्मराज को किसी उलझन भरी स्थिति पर कोई फैसला लेना था और मैं वो फैसला सुनने के लिए रुक गयी थी, इसलिये देर तक बैठी रही ध्यान में।’
उसके भाई ने पूछा–‛ऐसी क्या बात थी।’ लड़की ने बताया–‛अमूक राज्य का राजा अंधे व्यक्तियों को खीर खिलाया करता था। लेकिन सांप के दूध में विष डालने से एक सौ अंधे व्यक्ति मर गए। अब धर्मराज को समझ नहीं आ रही कि अंधे व्यक्तियों की मौत का पाप राजा को लगे, सांप को लगे या दूध नंगा छोड़ने वाले रसोईए को लगे।’
राजा भी सुन रहा था। राजा को अपने से संबंधित बात सुन कर दिलचस्पी हो गई और उसने लड़की से पूछा–‛फिर क्या फैसला हुआ ?’ लड़की ने बताया–‛अभी तक कोई फैसला नहीं हो पाया था।’ राजा ने पूछा–‛क्या मैं आपके घर एक रात के लिए और रुक सकता हूँ ?’ दोनों बहन भाइयों ने खुशी से उसको हाँ कर दी।
राजा अगले दिन के लिए रुक गया, लेकिन चौपाल में बैठे लोग दिन भर यही चर्चा करते रहे कि कल जो व्यक्ति हमारे गाँव में एक रात रुकने के लिए आया था और कोई भक्ति भाव वाला घर पूछ रहा था। उस की भक्ति का नाटक तो सामने आ गया है। रात काटने के बाद वो इसलिये नही गया क्योंकि जवान लड़की को देखकर उस व्यक्ति की नियत खोटी हो गई। इसलिए वह उस सुन्दर और जवान लड़की के घर पक्के तौर पर ही ठहरेगा या फिर लड़की को लेकर भागेगा। दिनभर चौपाल में उस राजा की निंदा होती रही।
अगली सुबह लड़की फिर ध्यान पर बैठी और अपने नियत समय पर ध्यान से उठ गई। तो राजा ने पूछा–‛बेटी अंधे व्यक्तियों की हत्या का पाप किसको लगा ?’
लड़की ने बताया–‛वह पाप तो हमारे गाँव के चौपाल में बैठने वाले लोग बांट के ले गए।’
सारांश:- निंदा करना कितना घाटे का सौदा है। निंदक हमेशा दूसरों के पाप अपने सर पर ढोता रहता है। और दूसरों द्वारा किये गए उन पाप-कर्मों के फल को भी भोगता है। अतः हमें सदैव निंदा से बचना चाहिए। भक्त कबीर जी ने कहा है–

जन कबीर कौ निंदा सार। निंदक डूबा हम उतरे पार॥

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Author: Abtak News 24

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